हनुमान चालीसा अवधी भाषा में संत तुलसीदास द्वारा रचित हनुमान का एक भजन है। इस भजन में 40 श्लोक हैं, इसलिए इस भजन को हनुमान चालीसा कहा जाता है।
संत तुलसीदास भारत के एक हिन्दू कवी थे। उन्होंने श्री हनुमान चालीसा की रचना 16 वीं शताब्दी में की थी।
अवधी भाषा में हनुमान चालीसा लिखी गई है।
अवधी, जिसे औधी भी कहा जाता है, उत्तरी भारत में बोली जाने वाली इंडो-आर्यन भाषा परिवार की एक पूर्वी हिंदी भाषा है। यह मुख्य रूप से भारत के वर्तमान उत्तर प्रदेश के अवध क्षेत्र में बोली जाती है। अवध नाम प्राचीन शहर अयोध्या से जुड़ा है, जिसे हिंदू भगवान राम की मातृभूमि माना जाता है।
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हनुमान चालीसा दोहा
श्रीगुरु चरण सरोज रज, निज मनु मुकुर सुधारि
बरनउ रघुवर बिमल जसु, जो दायकु फल चारि
बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन कुमार
बल बुधि विद्या देहु मोहि, हरहु कलेश विकार
हनुमान चालीसा चौपाई
जय हनुमान ज्ञान गुन सागर
जय कपीस तिहुँ लोक उजागर ॥१॥
राम दूत अतुलित बल धामा
अंजनि पुत्र पवनसुत नामा ॥२॥
महाबीर बिक्रम बजरंगी
कुमति निवार सुमति के संगी॥३॥
कंचन बरन बिराज सुबेसा
कानन कुंडल कुँचित केसा ॥४॥
हाथ बज्र अरु ध्वजा बिराजे
काँधे मूँज जनेऊ साजे ॥५॥
शंकर सुवन केसरी नंदन
तेज प्रताप महा जगवंदन ॥६॥
विद्यावान गुनी अति चातुर
राम काज करिबे को आतुर॥७॥
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया
राम लखन सीता मनबसिया ॥८॥
सूक्ष्म रूप धरि सियहि दिखावा
विकट रूप धरि लंक जरावा ॥९॥
भीम रूप धरि असुर सँहारे
रामचंद्र के काज सवाँरे ॥१०॥
लाय सजीवन लखन जियाए
श्री रघुबीर हरषि उर लाए ॥११॥
रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई
तुम मम प्रिय भरत-हि सम भाई॥१२॥
सहस बदन तुम्हरो जस गावै
अस कहि श्रीपति कंठ लगावै ॥१३॥
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा
नारद सारद सहित अहीसा ॥१४॥
जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते
कवि कोविद कहि सके कहाँ ते ॥१५॥
तुम उपकार सुग्रीवहि कीन्हा
राम मिलाय राज पद दीन्हा ॥१६॥
तुम्हरो मंत्र बिभीषण माना
लंकेश्वर भये सब जग जाना ॥१७॥
जुग सहस्र जोजन पर भानू
लिल्यो ताहि मधुर फ़ल जानू ॥१८॥
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माही
जलधि लाँघि गए अचरज नाही ॥१९॥
दुर्गम काज जगत के जेते
सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते ॥२०॥
राम दुआरे तुम रखवारे
होत ना आज्ञा बिनु पैसारे ॥२१॥
सब सुख लहैं तुम्हारी सरना
तुम रक्षक काहु को डरना ॥२२॥
आपन तेज सम्हारो आपै
तीनों लोक हाँक तै कापै॥२३॥
भूत पिशाच निकट नहि आवै
महावीर जब नाम सुनावै ॥२४॥
नासै रोग हरे सब पीरा
जपत निरंतर हनुमत बीरा ॥२५॥
संकट तै हनुमान छुडावै
मन क्रम वचन ध्यान जो लावै ॥२६॥
सब पर राम तपस्वी राजा
तिनके काज सकल तुम साजा ॥२७॥
और मनोरथ जो कोई लावै
सोई अमित जीवन फल पावै ॥२८॥
चारों जुग परताप तुम्हारा
है परसिद्ध जगत उजियारा ॥२९॥
साधु संत के तुम रखवारे
असुर निकंदन राम दुलारे ॥३०॥
अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता
अस बर दीन जानकी माता ॥३१॥
राम रसायन तुम्हरे पासा
सदा रहो रघुपति के दासा ॥३२॥
तुम्हरे भजन राम को पावै
जनम जनम के दुख बिसरावै ॥३३॥
अंतकाल रघुवरपुर जाई
जहाँ जन्म हरिभक्त कहाई ॥३४॥
और देवता चित्त ना धरई
हनुमत सेई सर्व सुख करई ॥३५॥
संकट कटै मिटै सब पीरा
जो सुमिरै हनुमत बलबीरा ॥३६॥
जै जै जै हनुमान गुसाईँ
कृपा करहु गुरु देव की नाई ॥३७॥
जो सत बार पाठ कर कोई
छूटहि बंदि महा सुख होई ॥३८॥
जो यह पढ़े हनुमान चालीसा
होय सिद्ध साखी गौरीसा ॥३९॥
तुलसीदास सदा हरि चेरा
कीजै नाथ हृदय मह डेरा ॥४०॥
हनुमान चालीसा दोहा
पवन तनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप।
राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप॥
गोस्वामी तुलसीदास कहते हैं कि जो हनुमान चालीसा का पाठ करता है उसे न केवल आनंद की प्राप्ति होती है, बल्कि वह सभी बंधनों से मुक्त भी हो जाता है। किसी भी मंत्र या स्तोत्र का पहले अर्थ समझकर उसका पठन करना ज्यादा फलदायी होता है | बिना अर्थ को जानकर कुछ भी गलत शब्दप्रयोग करना उस मंत्र या श्लोक का अपमान है। यह उतना प्रभावकारी नहीं होता जितना उसे समझकर उसका सही उच्चार करना होता है।
हनुमान चालीसा अर्थसहित | Hanuman Chalisha Lyrics with Meaning in Hindi
Hanuman Chalisa Doha
श्रीगुरु चरण सरोज रज, निज मनु मुकुर सुधारि..
बरनउ रघुवर बिमल जसु, जो दायकु फल चारि..
मैं गुरु के चरण कमलों की धूल से अपने मन के दर्पण को साफ करता हूं और फिर,
रघु वंश के सर्वोच्च राजा, जीवन की चार सिद्धियों के दाता, श्री राम चंद्र की पवित्र महिमा का वर्णन करता हूँ।
बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन कुमार
बल बुधि विद्या देहु मोहि, हरहु कलेश विकार
अपने आप को अज्ञानी जानकर, मैं आपसे विनती करता हूं, हे हनुमान, पवनपुत्र!
हे भगवान! कृपया मुझे शक्ति, बुद्धि और ज्ञान प्रदान करें, मेरे सभी दुखों और दोषों को दूर करें।
Hanuman Chalisa Chaupai
जय हनुमान ज्ञान गुन सागर
जय कपीस तिहुँ लोक उजागर ॥१॥
हनुमानजी आपकी जय हो, आप ज्ञान और गुणों के सागर हो।
तीनों लोकों में प्रसिद्ध वानरों के स्वामी आपकी जय हो।
राम दूत अतुलित बल धामा
अंजनि पुत्र पवनसुत नामा ॥२॥
हे राम के दिव्य संदेशवाहक और अथाह शक्ति के भंडार।
आप अंजनीपुत्र के रूप में भी जाने जाते हैं और पवनपुत्र के रूप में जाने जाते हैं।
महाबीर बिक्रम बजरंगी
कुमति निवार सुमति के संगी॥३॥
हे हनुमानजी! आप वीर और बहादुर हैं, आपका शरीर बिजली जैसा है।
आप बुरे विचारों के अंधकार को दूर करने वाले और सद्बुद्धि और ज्ञान देनेवाले हैं।
कंचन बरन बिराज सुबेसा
कानन कुंडल कुँचित केसा ॥४॥
श्री हनुमानजी का शरीर सुनहरे रंग का है। उनकी पोशाक सुंदर है।
कान में ‘कुंडल’ पहने हुए है और उनके बाल लंबे और घुंघराले हैं।
हाथ बज्र अरु ध्वजा बिराजे
काँधे मूँज जनेऊ साजे ॥५॥
हनुमानजी की हाथ में बज्र और रामनाम की ध्वजा है,
और कन्धे पर मूंज के जनेऊ की शोभा है।
शंकर सुवन केसरी नंदन
तेज प्रताप महा जगवंदन ॥६॥
हे हनुमानजी! आप ‘शिव’ के अवतार हैं और आप श्री केशरी को प्रसन्न करते हैं।
सदा तेजस्वी होने के कारण, आप और ब्रह्मांड पर प्रभाव रखते हैं। सारा संसार प्रणाम करता है। आप सभी के आराध्य हैं।
विद्यावान गुनी अति चातुर
राम काज करिबे को आतुर॥७॥
हे ! श्री हनुमानजी! आप ज्ञान के भंडार हैं, गुणी हैं।
बहुत बुद्धिमान हैं और श्री राम का कार्य करने के लिए अत्यधिक उत्सुक हैं।
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया
राम लखन सीता मनबसिया ॥८॥
आप श्री राम चरित सुनने में आनन्द रस लेते है।
श्री राम, सीता और लक्ष्मण आपके हृदय में बसे रहते है।
सूक्ष्म रूप धरि सियहि दिखावा
विकट रूप धरि लंक जरावा ॥९॥
आपने अपना बहुत छोटा रूप धारण करके सीता जी को दिखलाया
और भयानक रूप धारण करके लंका को जलाया।
भीम रूप धरि असुर सँहारे
रामचंद्र के काज सवाँरे ॥१०॥
आपने विकराल रूप धारण करके राक्षसों को मारा
और श्री रामचन्द्र जी के सभी कार्य किए।
लाय सजीवन लखन जियाए
श्री रघुबीर हरषि उर लाए ॥११॥
आपने संजीवनी बूटी लाकर लक्ष्मण जी को जीवित किया
जिससे श्री रघुवीर ने हर्षित होकर आपको हृदय से लगा लिया।
रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई
तुम मम प्रिय भरत-हि सम भाई॥१२॥
श्री राम ने हनुमानजी की उत्कृष्टता की प्रशंसा की और कहा,
“आप मुझे अपने भाई भरत के समान प्रिय हैं”
सहस बदन तुम्हरो जस गावै
अस कहि श्रीपति कंठ लगावै ॥१३॥
श्री राम ने हनुमानजी को गले लगाते हुए कहा:
“हजारों जीभ वाले शेषनाग भी आपकी महिमा गाते रहेंगे”
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा
नारद सारद सहित अहीसा ॥१४॥
सनक और ऋषि, संत, भगवान ब्रह्मा, महान उपदेशक नारद और
देवी सरस्वती शेषनाग सब आपका गुण गान करते है।
जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते
कवि कोविद कहि सके कहाँ ते ॥१५॥
जब यमराज, कुबेर आदि सब दिशाओं के रक्षक या कोई भी आपके यश का पूर्णतः वर्णन नहीं कर सकते।
फिर कवि और विद्वान कैसे उसका वर्णन कर सकते हैं।
तुम उपकार सुग्रीवहि कीन्हा
राम मिलाय राज पद दीन्हा ॥१६॥
हनुमानजी! आपने सुग्रीव जी को श्रीराम से मिलाकर उपकार किया,
जिसके कारण वे राजा बने।
तुम्हरो मंत्र बिभीषण माना
लंकेश्वर भये सब जग जाना ॥१७॥
आपके उपदेश का विभिषण जी ने पालन किया
जिससे वे लंका के राजा बने, इसको सब संसार जानता है।
जुग सहस्र जोजन पर भानू
लिल्यो ताहि मधुर फ़ल जानू ॥१८॥
हनुमानजी ने सूर्य जो सोलह हजार मील की दूरी पर है,
उसे एक मीठा फल समझकर निगल लिया।
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माही
जलधि लाँघि गए अचरज नाही ॥१९॥
आपने श्री रामचन्द्र जी की अंगूठी मुंह में रखकर समुद्र को पार किया,
इसमें कोई आश्चर्य नहीं है।
दुर्गम काज जगत के जेते
सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते ॥२०॥
हे हनुमानजी! संसार में जितने भी कठिन से कठिन काम हो,
वो आपकी कृपा से आसान हो जाते हैं।
राम दुआरे तुम रखवारे
होत ना आज्ञा बिनु पैसारे ॥२१॥
हे हनुमानजी! आप रामचन्द्र जी के द्वार के रखवाले हैं।
और आपके आदेश के बिना कोई भी वहां प्रवेश नहीं कर सकता है।
सब सुख लहैं तुम्हारी सरना
तुम रक्षक काहु को डरना ॥२२॥
आपन तेज सम्हारो आपै
तीनों लोक हाँक तै कापै॥२३॥
भूत पिशाच निकट नहि आवै
महावीर जब नाम सुनावै ॥२४॥
नासै रोग हरे सब पीरा
जपत निरंतर हनुमत बीरा ॥२५॥
संकट तै हनुमान छुडावै
मन क्रम वचन ध्यान जो लावै ॥२६॥
सब पर राम तपस्वी राजा
तिनके काज सकल तुम साजा ॥२७॥
और मनोरथ जो कोई लावै
सोई अमित जीवन फल पावै ॥२८॥
चारों जुग परताप तुम्हारा
है परसिद्ध जगत उजियारा ॥२९॥
साधु संत के तुम रखवारे
असुर निकंदन राम दुलारे ॥३०॥
अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता
अस बर दीन जानकी माता ॥३१॥
राम रसायन तुम्हरे पासा
सदा रहो रघुपति के दासा ॥३२॥
तुम्हरे भजन राम को पावै
जनम जनम के दुख बिसरावै ॥३३॥
अंतकाल रघुवरपुर जाई
जहाँ जन्म हरिभक्त कहाई ॥३४॥
और देवता चित्त ना धरई
हनुमत सेई सर्व सुख करई ॥३५॥
संकट कटै मिटै सब पीरा
जो सुमिरै हनुमत बलबीरा ॥३६॥
जै जै जै हनुमान गुसाईँ
कृपा करहु गुरु देव की नाई ॥३७॥
जो सत बार पाठ कर कोई
छूटहि बंदि महा सुख होई ॥३८॥
जो यह पढ़े हनुमान चालीसा
होय सिद्ध साखी गौरीसा ॥३९॥
तुलसीदास सदा हरि चेरा
कीजै नाथ हृदय मह डेरा ॥४०॥
Hanuman Chalisa Doha
पवन तनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप।
राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप॥